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खूबसूरत लड़कि नहीं मिलतीं आसानी से
होती हैं कई प्रतियोगिताएं
मिस सिटी से मिस यूनिवर्स तक
अब मिसेज भी होने लगी हैं
इसके बावजूद नहीं मिलतीं
उनके चेहरे पर लिपे होते हैं
प्रायोजकों के लेप
हर अंग पर लिपटी होती हैं
आयोजकों की चिंदियां
फिर भी नहीं होतीं वे खूबसूरत
उनके चेहरे पर चमकता है बाजार
अंतत: खारिज हो जाती हैं अगले साल
खूबसूरत लड़कियां नहीं मिलती प्रतियोगिताओं से
खूबसूरत लड़कियां जूझती हैं जीवन से
उनके चेहरे पर चमकती हैं पसीने की बूंदें
उनके दिल में होती है निश्छलता
नहीं जानतीं वे बाजार भाव
वे बिकाऊ नहीं होतीं
राजू कुमार
ख़ूबसूरत लड़कियां
खूबसूरत लड़कियां
नहीं मिलतीं आसानी से
होती हैं कई प्रतियोगिताएं
मिस सिटी से मिस यूनिवर्स तक
अब मिसेज भी होने लगी हैं
इसके बावजूद नहीं मिलतीं
उनके चेहरे पर लिपे होते हैं
प्रायोजकों के लेप
हर अंग पर लिपटी होती हैं
आयोजकों की चिंदियां
फिर भी नहीं होतीं वे खूबसूरत
उनके चेहरे पर चमकता है बाजार
अंतत: खारिज हो जाती हैं अगले साल
खूबसूरत लड़कियां नहीं मिलती प्रतियोगिताओं से
खूबसूरत लड़कियां जूझती हैं जीवन से
उनके चेहरे पर चमकती हैं पसीने की बूंदें
उनके दिल में होती है निश्छलता
नहीं जानतीं वे बाजार भाव
वे बिकाऊ नहीं होतीं
राजू कुमार
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तहलका हिंदी, एम-76, एम ब्लॉक मार्केट, ग्रेटर कैलाश-2, नई दिल्ली-48
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Comments (13 posted)
logo ke beech me iska sandesh kya sahi tarike pahuch payega !
एक धनी बाला ,
कम से कम वस्त्र पहन
दिखाती है जब ज्यादा से ज्यादा तन,
तो लोग कहते हैं
यही तो है आधुनिक फ़ैशन।
एक निर्धन बाला को
लोग कहते हैं बेशर्म,
जब वस्त्र न होने के कारण
वह ढाँप नहीं पाती अपना तन
kubsurat kavita likhi hai Raju jee aapne.
Badhai.
Abhijit Kr. Dubey
Asansol
आैरतें या लऱिकयां जो भी ईस तरह के प्रोग्राम में भाग लेते हैं अपने आप को बहूत ही आधूिनक समझते हैं, क्या पूरी जनता के सामने नंगा होना ही आैरतों का आधूनीकरण है?
अगर ऐसा है तो मैं तवायफ को ईन लोगों से कहीं अच्छा मानता हूं, तवायफ तो अपना िजश्म िसर्फ अपने गर्ाहक को ही िदखाती है, लेिकन ये लऱिकयां अपना िजश्म पूरी दूिनया को िदखाती हैं
13 March
जी हां, आपने चूड़ियां नहीं पहनी हैं और आप पहन भी नहीं सकते। आप ही के जैसे तमाम वे मर्द चूड़ियां पहनने का माद्दा नहीं रखते जो इसे दोयम दर्जे का काम समझते हैं। चूड़ियां पहनने के लिए कलेजा चाहिए साहब।
आप फौजी हैं। संगीन पर जाकर गोली खाते हैं। इस बात की इज़्ज़त करते हैं हम। लेकिन कभी सोचा है, आप तो सिर्फ एक बार गोली खाकर मर जाते हैं। आपके पीछे से आपकी वही बेवाएं आपकी नई पुश्त के लिए ज़िन्दगी से दो-दो हाथ करती हैं, जिनके हाथों में 'चूड़ियां' पड़ी हैं।
आप मर्द हैं और भारतीय समाज की व्यवस्था के मुताबिक आप आज़ाद हैं। कभी उस औरत की तरह दोहरी ज़िम्मेदारियां निभा कर देखिए जो आपको वह जिगरा देती है कि आप जाइए और मुल्क पर कुर्बान हो जाएं। पीछे से जो भी होगा उससे खुद ही निपटती हैं। आखिर स्त्री को दोयम दर्जे पर रखना आप लोग कब बंद करेंगे? इस तमाम शिक्षा प्रणाली और विकासवादी मानसिकता का क्या लाभ हो रहा है समाज को? चूड़ियां पहनना मतलब है अपने हाथ खुद बांध लेना। मर्यादा, लिहाज़ और शर्म के बंधनों में। कभी ऐसी बकवास बातें करने वालों को बंधन में बांध कर बैठाइए। तब यह जानेंगे कि चूड़ियां पहनने का मतलब क्या होता है।
Pravesh Chaurasiya
Story / Screenplay Writer ( Mumbai )
13 March
जी हां, आपने चूड़ियां नहीं पहनी हैं और आप पहन भी नहीं सकते। आप ही के जैसे तमाम वे मर्द चूड़ियां पहनने का माद्दा नहीं रखते जो इसे दोयम दर्जे का काम समझते हैं। चूड़ियां पहनने के लिए कलेजा चाहिए साहब।
आप फौजी हैं। संगीन पर जाकर गोली खाते हैं। इस बात की इज़्ज़त करते हैं हम। लेकिन कभी सोचा है, आप तो सिर्फ एक बार गोली खाकर मर जाते हैं। आपके पीछे से आपकी वही बेवाएं आपकी नई पुश्त के लिए ज़िन्दगी से दो-दो हाथ करती हैं, जिनके हाथों में 'चूड़ियां' पड़ी हैं।
आप मर्द हैं और भारतीय समाज की व्यवस्था के मुताबिक आप आज़ाद हैं। कभी उस औरत की तरह दोहरी ज़िम्मेदारियां निभा कर देखिए जो आपको वह जिगरा देती है कि आप जाइए और मुल्क पर कुर्बान हो जाएं। पीछे से जो भी होगा उससे खुद ही निपटती हैं। आखिर स्त्री को दोयम दर्जे पर रखना आप लोग कब बंद करेंगे? इस तमाम शिक्षा प्रणाली और विकासवादी मानसिकता का क्या लाभ हो रहा है समाज को? चूड़ियां पहनना मतलब है अपने हाथ खुद बांध लेना। मर्यादा, लिहाज़ और शर्म के बंधनों में। कभी ऐसी बकवास बातें करने वालों को बंधन में बांध कर बैठाइए। तब यह जानेंगे कि चूड़ियां पहनने का मतलब क्या होता है।
Pravesh Chaurasiya
Story/Screenplay Writer (Mumbai)
दिल्ली में चलती बस में सामुहिक बलात्कार मामले के बाद दोषियों को फांसी देने या नपुंसक बनाने पर चर्चा हो रही है। आज जब कांग्रेस और भाजपा समेत कई राजनीतिक दल बलात्कारी को रासायनिक तरीके से नपुंसक बनाने की पैरवी कर रहे हैं तो इस सुझाव के कानूनी पहलू, व्यावहारिकता और परिणाम जांचना लाजमी है। इस तरह का सुझाव पिछले तैंतीस साल में दो बार अदालती पैâसलों में आया। राजेंद्र प्रसाद बनाम उत्तर प्रदेश मामले के पैâसले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने १९८२ में ‘बच्चन िंसह बनाम पंजाब राज्य’ मामले की सुनवाई के दौरान फिर विचार किया। जब बलात्कारी को नपुंसक बनाने की वैकाqल्पक सजा के सुझाव का जिक्र हुआ तो पीठ ने उसे हंसी में टाल दिया। बच्चन िंसह की ओर से पेश हुए वकील डीके गर्ग कहते हैं, ‘कोर्ट ने सुझाव से असहमति जताई थी। कोर्ट की टिप्पणी थी कि ऐसी सजा वैâसे दी जा सकती है न्यायपालिका को अधिकार नहीं है कि वह स्वयं सजा तय करे और फिर वही सजा सुना दे। अदालत कानून के दायरे में रहकर ही सजा सुना सकती है।’ गर्ग की बात से दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आरएस सोढ़ी भी सहमति जताते हैं। सोढ़ी बच्चन िंसह मामले में पंजाब सरकार के वकील थे। उन्होंने कहा, कोर्ट ने सुझाव को गंभीरता से नहीं लिया था। अदालत का कहना था कि यह वैâस्ट्रेशन कहां से आ गया? वैâस्ट्रेशन वैâसे कर सकते हैं? अदालत ऐसा नहीं कह सकती। गौरतलब है। कि भारत में महिलाओं के प्रति बढ़ते यौन अपराधों को रोकने के लिए बलात्कारी को रासायनिक तरीके से नपुंसक बनाने की बात चल रही है। ऐसे में अगर इसके दृष्टांत खंगाले जाएं तो पता चलता है कि अमेरिका के वर्जीनिया में आनुवांशिक रूप से मंदबुद्धि लोगों के जबरन नपुंसक बनाने का कानून लागू था। यूएस सुप्रीम कोर्ट ने १९२७ में ‘बक बनाम बेल’ मामले में इसे संवैधानिक ठहराया था।
दिल्ली में चलती बस में सामुहिक बलात्कार मामले के बाद दोषियों को फांसी देने या नपुंसक बनाने पर चर्चा हो रही है। आज जब कांग्रेस और भाजपा समेत कई राजनीतिक दल बलात्कारी को रासायनिक तरीके से नपुंसक बनाने की पैरवी कर रहे हैं तो इस सुझाव के कानूनी पहलू, व्यावहारिकता और परिणाम जांचना लाजमी है। इस तरह का सुझाव पिछले तैंतीस साल में दो बार अदालती पैâसलों में आया। राजेंद्र प्रसाद बनाम उत्तर प्रदेश मामले के पैâसले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने १९८२ में ‘बच्चन िंसह बनाम पंजाब राज्य’ मामले की सुनवाई के दौरान फिर विचार किया। जब बलात्कारी को नपुंसक बनाने की वैकाqल्पक सजा के सुझाव का जिक्र हुआ तो पीठ ने उसे हंसी में टाल दिया। बच्चन िंसह की ओर से पेश हुए वकील डीके गर्ग कहते हैं, ‘कोर्ट ने सुझाव से असहमति जताई थी। कोर्ट की टिप्पणी थी कि ऐसी सजा वैâसे दी जा सकती है न्यायपालिका को अधिकार नहीं है कि वह स्वयं सजा तय करे और फिर वही सजा सुना दे। अदालत कानून के दायरे में रहकर ही सजा सुना सकती है।’ गर्ग की बात से दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आरएस सोढ़ी भी सहमति जताते हैं। सोढ़ी बच्चन िंसह मामले में पंजाब सरकार के वकील थे। उन्होंने कहा, कोर्ट ने सुझाव को गंभीरता से नहीं लिया था। अदालत का कहना था कि यह वैâस्ट्रेशन कहां से आ गया? वैâस्ट्रेशन वैâसे कर सकते हैं? अदालत ऐसा नहीं कह सकती। गौरतलब है। कि भारत में महिलाओं के प्रति बढ़ते यौन अपराधों को रोकने के लिए बलात्कारी को रासायनिक तरीके से नपुंसक बनाने की बात चल रही है। ऐसे में अगर इसके दृष्टांत खंगाले जाएं तो पता चलता है कि अमेरिका के वर्जीनिया में आनुवांशिक रूप से मंदबुद्धि लोगों के जबरन नपुंसक बनाने का कानून लागू था। यूएस सुप्रीम कोर्ट ने १९२७ में ‘बक बनाम बेल’ मामले में इसे संवैधानिक ठहराया था।
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