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Friday, 22 November 2013

Tehelka dot om

This blog on Tehelka  was no less than a shocker for me as much as Tarun Tejpals  sexual assault news. I incidentally stumbled upon this poetry blog by some Rajkumar who has used objectionable language for girls//women in the magazine section of hindi edition. I felt disgusted not only after going through the concluding lines of the poem , where the poet has used  बिकाऊ  (for sale) word for a particular segment of girls but also the comments  which are worse than the poem . I have copy pasted not only the link but also the entire page along with comments for people to read . It looks like mag section of  Tehelka  that is much in news these days  yet  not too sure  but I wonder how can an editor allow such material to be published on a public platform . To condemn this article please go to the link published and post your comment.
http://www.tehelkahindi.com/stambh/anyastambh/buds/42.html






खूबसूरत लड़कि नहीं मिलतीं आसानी से
होती हैं कई प्रतियोगिताएं
मिस सिटी से मिस यूनिवर्स तक
अब मिसेज भी होने लगी हैं
इसके बावजूद नहीं मिलतीं
उनके चेहरे पर लिपे होते हैं
प्रायोजकों के लेप
हर अंग पर लिपटी होती हैं
आयोजकों की चिंदियां
फिर भी नहीं होतीं वे खूबसूरत
उनके चेहरे पर चमकता है बाजार
अंतत: खारिज हो जाती हैं अगले साल
खूबसूरत लड़कियां नहीं मिलती प्रतियोगिताओं से
खूबसूरत लड़कियां जूझती हैं जीवन से
उनके चेहरे पर चमकती हैं पसीने की बूंदें
उनके दिल में होती है निश्‍‍छलता
नहीं जानतीं वे बाजार भाव
वे बिकाऊ नहीं होतीं

                                            राजू कुमार





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ख़ूबसूरत लड़कियां

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खूबसूरत लड़कियां

नहीं मिलतीं आसानी से

होती हैं कई प्रतियोगिताएं

मिस सिटी से मिस यूनिवर्स तक
अब मिसेज भी होने लगी हैं
इसके बावजूद नहीं मिलतीं
उनके चेहरे पर लिपे होते हैं
प्रायोजकों के लेप
हर अंग पर लिपटी होती हैं
आयोजकों की चिंदियां
फिर भी नहीं होतीं वे खूबसूरत
उनके चेहरे पर चमकता है बाजार
अंतत: खारिज हो जाती हैं अगले साल
खूबसूरत लड़कियां नहीं मिलती प्रतियोगिताओं से
खूबसूरत लड़कियां जूझती हैं जीवन से
उनके चेहरे पर चमकती हैं पसीने की बूंदें
उनके दिल में होती है निश्‍‍छलता
नहीं जानतीं वे बाजार भाव
वे बिकाऊ नहीं होतीं
                                            राजू कुमार
तैंतीस वर्षीय राजू, भोपाल में मीडिया जगत से जुड़े हैं.'साहित्य की कोपलें ' उभरते हुए अंकुरों को खाद-पानी देने का एक छोटा सा प्रयास है. आप भी इस वर्ग के लिए अपनी रचनाएं (फोटो और संक्षिप्त परिचय के साथ) hindi@tehelka.com पर ईमेल कर सकते हैं या फिर नीचे लिखे पते पर भेज सकते हैं.
तहलका हिंदी, एम-76, एम ब्लॉक मार्केट, ग्रेटर कैलाश-2, नई दिल्ली-48

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phool singh 25/09/2013 22:20:00
Delhi me huye samoohik balatkar ke dosiyo ko jo fansi ki saja sunai gayi yah bahut hi chhoti hai
logo ke beech me iska sandesh kya sahi tarike pahuch payega !
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aditya 26/06/2013 09:15:59
bhoot bhoot bhoot umda rchna hai
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dhan singh verma 16/05/2013 01:26:16
राजू जी आपकी कविता वो सच है जो कड़वा है। ऐसे विचारों के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। जयहिंद, जयभारत। सोच
एक धनी बाला ,
कम से कम वस्त्र पहन
दिखाती है जब ज्यादा से ज्यादा तन,
तो लोग कहते हैं
यही तो है आधुनिक फ़ैशन।

एक निर्धन बाला को
लोग कहते हैं बेशर्म,
जब वस्त्र न होने के कारण
वह ढाँप नहीं पाती अपना तन
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Dinesh Ranjan 28/10/2013 01:51:38
good lines
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Abhijit Kr. Dubey 12/05/2013 08:01:31
Raju jee,
kubsurat kavita likhi hai Raju jee aapne.
Badhai.
Abhijit Kr. Dubey
Asansol
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आिजम तौसीफ 01/05/2013 23:18:21
बहूत अच्छी किवता िलखी है राजू जी आपने, आजकल खूबसूरती का मतलब ही बदल गया है, पहले खूबसूरती चेहरे से आैर आचरण से हाेती थी आैर आज खूबसूरती नंगा हाेकर अपना िजश्म िदखाने को कहते हैं.
आैरतें या लऱिकयां जो भी ईस तरह के प्रोग्राम में भाग लेते हैं अपने आप को बहूत ही आधूिनक समझते हैं, क्या पूरी जनता के सामने नंगा होना ही आैरतों का आधूनीकरण है?
अगर ऐसा है तो मैं तवायफ को ईन लोगों से कहीं अच्छा मानता हूं, तवायफ तो अपना िजश्म िसर्फ अपने गर्ाहक को ही िदखाती है, लेिकन ये लऱिकयां अपना िजश्म पूरी दूिनया को िदखाती हैं
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Pravesh Chaurasiya 17/04/2013 09:22:52
Parvesh Chaurasiya
13 March
जी हां, आपने चूड़ियां नहीं पहनी हैं और आप पहन भी नहीं सकते। आप ही के जैसे तमाम वे मर्द चूड़ियां पहनने का माद्दा नहीं रखते जो इसे दोयम दर्जे का काम समझते हैं। चूड़ियां पहनने के लिए कलेजा चाहिए साहब।

आप फौजी हैं। संगीन पर जाकर गोली खाते हैं। इस बात की इज़्ज़त करते हैं हम। लेकिन कभी सोचा है, आप तो सिर्फ एक बार गोली खाकर मर जाते हैं। आपके पीछे से आपकी वही बेवाएं आपकी नई पुश्त के लिए ज़िन्दगी से दो-दो हाथ करती हैं, जिनके हाथों में 'चूड़ियां' पड़ी हैं।

आप मर्द हैं और भारतीय समाज की व्यवस्था के मुताबिक आप आज़ाद हैं। कभी उस औरत की तरह दोहरी ज़िम्मेदारियां निभा कर देखिए जो आपको वह जिगरा देती है कि आप जाइए और मुल्क पर कुर्बान हो जाएं। पीछे से जो भी होगा उससे खुद ही निपटती हैं। आखिर स्त्री को दोयम दर्जे पर रखना आप लोग कब बंद करेंगे? इस तमाम शिक्षा प्रणाली और विकासवादी मानसिकता का क्या लाभ हो रहा है समाज को? चूड़ियां पहनना मतलब है अपने हाथ खुद बांध लेना। मर्यादा, लिहाज़ और शर्म के बंधनों में। कभी ऐसी बकवास बातें करने वालों को बंधन में बांध कर बैठाइए। तब यह जानेंगे कि चूड़ियां पहनने का मतलब क्या होता है।

Pravesh Chaurasiya
Story / Screenplay Writer ( Mumbai )
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Pravesh Chaurasiya 17/04/2013 09:21:27
Parvesh Chaurasiya
13 March
जी हां, आपने चूड़ियां नहीं पहनी हैं और आप पहन भी नहीं सकते। आप ही के जैसे तमाम वे मर्द चूड़ियां पहनने का माद्दा नहीं रखते जो इसे दोयम दर्जे का काम समझते हैं। चूड़ियां पहनने के लिए कलेजा चाहिए साहब।

आप फौजी हैं। संगीन पर जाकर गोली खाते हैं। इस बात की इज़्ज़त करते हैं हम। लेकिन कभी सोचा है, आप तो सिर्फ एक बार गोली खाकर मर जाते हैं। आपके पीछे से आपकी वही बेवाएं आपकी नई पुश्त के लिए ज़िन्दगी से दो-दो हाथ करती हैं, जिनके हाथों में 'चूड़ियां' पड़ी हैं।

आप मर्द हैं और भारतीय समाज की व्यवस्था के मुताबिक आप आज़ाद हैं। कभी उस औरत की तरह दोहरी ज़िम्मेदारियां निभा कर देखिए जो आपको वह जिगरा देती है कि आप जाइए और मुल्क पर कुर्बान हो जाएं। पीछे से जो भी होगा उससे खुद ही निपटती हैं। आखिर स्त्री को दोयम दर्जे पर रखना आप लोग कब बंद करेंगे? इस तमाम शिक्षा प्रणाली और विकासवादी मानसिकता का क्या लाभ हो रहा है समाज को? चूड़ियां पहनना मतलब है अपने हाथ खुद बांध लेना। मर्यादा, लिहाज़ और शर्म के बंधनों में। कभी ऐसी बकवास बातें करने वालों को बंधन में बांध कर बैठाइए। तब यह जानेंगे कि चूड़ियां पहनने का मतलब क्या होता है।

Pravesh Chaurasiya
Story/Screenplay Writer (Mumbai)
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AMIT J ACHARYA 16/04/2013 02:58:20
Mr. AMITKUMAR JAYANTKUMAR ACHARYA ,AHEMDABAD E-MAIL ADD:-amitacharya81@ymail.com

दिल्ली में चलती बस में सामुहिक बलात्कार मामले के बाद दोषियों को फांसी देने या नपुंसक बनाने पर चर्चा हो रही है। आज जब कांग्रेस और भाजपा समेत कई राजनीतिक दल बलात्कारी को रासायनिक तरीके से नपुंसक बनाने की पैरवी कर रहे हैं तो इस सुझाव के कानूनी पहलू, व्यावहारिकता और परिणाम जांचना लाजमी है। इस तरह का सुझाव पिछले तैंतीस साल में दो बार अदालती पैâसलों में आया। राजेंद्र प्रसाद बनाम उत्तर प्रदेश मामले के पैâसले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने १९८२ में ‘बच्चन िंसह बनाम पंजाब राज्य’ मामले की सुनवाई के दौरान फिर विचार किया। जब बलात्कारी को नपुंसक बनाने की वैकाqल्पक सजा के सुझाव का जिक्र हुआ तो पीठ ने उसे हंसी में टाल दिया। बच्चन िंसह की ओर से पेश हुए वकील डीके गर्ग कहते हैं, ‘कोर्ट ने सुझाव से असहमति जताई थी। कोर्ट की टिप्पणी थी कि ऐसी सजा वैâसे दी जा सकती है न्यायपालिका को अधिकार नहीं है कि वह स्वयं सजा तय करे और फिर वही सजा सुना दे। अदालत कानून के दायरे में रहकर ही सजा सुना सकती है।’ गर्ग की बात से दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आरएस सोढ़ी भी सहमति जताते हैं। सोढ़ी बच्चन िंसह मामले में पंजाब सरकार के वकील थे। उन्होंने कहा, कोर्ट ने सुझाव को गंभीरता से नहीं लिया था। अदालत का कहना था कि यह वैâस्ट्रेशन कहां से आ गया? वैâस्ट्रेशन वैâसे कर सकते हैं? अदालत ऐसा नहीं कह सकती। गौरतलब है। कि भारत में महिलाओं के प्रति बढ़ते यौन अपराधों को रोकने के लिए बलात्कारी को रासायनिक तरीके से नपुंसक बनाने की बात चल रही है। ऐसे में अगर इसके दृष्टांत खंगाले जाएं तो पता चलता है कि अमेरिका के वर्जीनिया में आनुवांशिक रूप से मंदबुद्धि लोगों के जबरन नपुंसक बनाने का कानून लागू था। यूएस सुप्रीम कोर्ट ने १९२७ में ‘बक बनाम बेल’ मामले में इसे संवैधानिक ठहराया था।
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saalim sheikh 22/03/2013 00:59:41
Khubsurat kavita hai raju ji lage rahiye
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AMIT J ACHARYA 03/02/2013 10:02:54
Mr. AMITKUMAR JAYANTKUMAR ACHARYA ,AHEMDABAD E-MAIL ADD:-amitacharya81@ymail.com

दिल्ली में चलती बस में सामुहिक बलात्कार मामले के बाद दोषियों को फांसी देने या नपुंसक बनाने पर चर्चा हो रही है। आज जब कांग्रेस और भाजपा समेत कई राजनीतिक दल बलात्कारी को रासायनिक तरीके से नपुंसक बनाने की पैरवी कर रहे हैं तो इस सुझाव के कानूनी पहलू, व्यावहारिकता और परिणाम जांचना लाजमी है। इस तरह का सुझाव पिछले तैंतीस साल में दो बार अदालती पैâसलों में आया। राजेंद्र प्रसाद बनाम उत्तर प्रदेश मामले के पैâसले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने १९८२ में ‘बच्चन िंसह बनाम पंजाब राज्य’ मामले की सुनवाई के दौरान फिर विचार किया। जब बलात्कारी को नपुंसक बनाने की वैकाqल्पक सजा के सुझाव का जिक्र हुआ तो पीठ ने उसे हंसी में टाल दिया। बच्चन िंसह की ओर से पेश हुए वकील डीके गर्ग कहते हैं, ‘कोर्ट ने सुझाव से असहमति जताई थी। कोर्ट की टिप्पणी थी कि ऐसी सजा वैâसे दी जा सकती है न्यायपालिका को अधिकार नहीं है कि वह स्वयं सजा तय करे और फिर वही सजा सुना दे। अदालत कानून के दायरे में रहकर ही सजा सुना सकती है।’ गर्ग की बात से दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आरएस सोढ़ी भी सहमति जताते हैं। सोढ़ी बच्चन िंसह मामले में पंजाब सरकार के वकील थे। उन्होंने कहा, कोर्ट ने सुझाव को गंभीरता से नहीं लिया था। अदालत का कहना था कि यह वैâस्ट्रेशन कहां से आ गया? वैâस्ट्रेशन वैâसे कर सकते हैं? अदालत ऐसा नहीं कह सकती। गौरतलब है। कि भारत में महिलाओं के प्रति बढ़ते यौन अपराधों को रोकने के लिए बलात्कारी को रासायनिक तरीके से नपुंसक बनाने की बात चल रही है। ऐसे में अगर इसके दृष्टांत खंगाले जाएं तो पता चलता है कि अमेरिका के वर्जीनिया में आनुवांशिक रूप से मंदबुद्धि लोगों के जबरन नपुंसक बनाने का कानून लागू था। यूएस सुप्रीम कोर्ट ने १९२७ में ‘बक बनाम बेल’ मामले में इसे संवैधानिक ठहराया था।
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AMIT J ACHARYA 03/02/2013 09:59:28
पत्र द्वारा

तहलका हिंदी

एम-76, दूसरा तल

एम ब्लॉक मार्केट

ग्रेटर कैलाश-2

नई दिल्ली-110048

ईमेल द्वारा

hindi@tehelka.com

फोन/फैक्स

+91-11-40575757
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santoshgangele 19/09/2012 22:06:04
राजू कुमार . तुम्हारी ये कविता, एक गजल बन गई है. कविता के शब्द मिल कर नई दुल्हन बन गई है. संतोष गंगेले पत्रकार
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Thursday, 21 November 2013

Tarun Tejpal 's self imposed vacation



Is  six months self imposed vacation sufficient punishment for sexual assault  accused Tarun Tejpal ? And can Shoma  Chowdhry  address a sexual assault an internal matter ? Does that show the face of pseudo society of our country ?



Tarun Tejpall who is accused of sexually assaulting a woman journalist on the 7th November 2013, the opening night of Tehelka’s Think festival at Goa, and was followed by the second assault the next night according to Outlook magazine, which also reports that Tejpal threatened the girl that yielding to his demands was the easiest way to keep her job.The code of watchdogs dictates that if one of us is the thief, we must pounce on him with the same ferocity as we do on others. Tarun Tejpal's alleged sexual assault must be treated the same way as Asaram's alleged rape(s).



Tarun Tejpal, the Editor-in-Chief of investigative magazine Tehelka, stepped down after allegations of sexual assault were made against him by a woman colleague. Tejpal  stepped aside from his role for a period of six months. Surprisingly Shoma Chowdhry who is often seen on television channels  debating for harsher punishment for rape accused  chose to remain silent over two weeks. Tejpal and Chaudhury both tried to keep the nature of the 'untoward/unfortunate' incident shrouded in mystery, it wasn't long before the gory details started to tumble out finally made a public statement saying she needs more time for investigation.



Shouldn't Shoma Chowdhry who was on a Newsweek list of 150 Women who Shake the World -- must have taken the charges seriously and set up a sexual harassment panel in office as per the Supreme Court's Vishakha judgement guidelines . Also as per Supreme Court's guide lines she should have reported the matter to police as it was her responsibility to do so ? Instead Chaudhury, did not confirm or deny if this was a case of alleged sexual harassment and refused to specify what the "incident" was, claiming it was "an internal matter" If we go by Shoma and the internal matter of Tehelka  then we should consider Nirbhaya Rape Case as internal matter of the transporter.  To conclude no way  Tejpal can be treated differently from others accused of having committed a crime under section 376 Indian Penal Code .He must be tried in the court and punished .

Photocredit google image search result








Tuesday, 19 November 2013

Watch your LBD Pop

Who doesn't like to dress up well  , we all do and so do I but  dressing up in a style and making a style statement of one's own is more important than just dressing up . Colour co ordination and right tones coupled with  accessories , matching  jewellery ,shoes ,bags and watches  are important elements in my dressing style . Most important I  like to dress up elegantly and look crisp dressing up sloppily doesn't go with me  and here are few tips for dressing up my style please click on the below given link .


Will come back with more tips in my next post , à la prochaine !

Monday, 18 November 2013

15 Basic rules to fitness

"Physical fitness has been defined as a set of attributes or characteristics that people have or achieve that relates to the ability to perform physical activity.In previous years fitness was commonly defined as the capacity to carry out the day’s activities without undue fatigue. However, as automation increased leisure time, changes in lifestyles following the industrial revolution rendered this definition insufficient. In current contexts, physical fitness is considered a measure of the body’s ability to function efficiently and effectively in work and leisure activities, to be healthy ."



Following a fitness regime regularly not only cuts down ageing signs from the face and body but also helps increase metabolic age. But to achieve a fit body is a task for most of us , some may try to achieve it through dieting and others through workout and at times we also get carried away by advertisements promising to weight loss and fit body . If you are looking for an honest solution please visit the below given link .htmlhttp://aakriti-narula.blogspot.in/2013/08/15-basic-rules-to-fitness.html

Sunday, 17 November 2013

300 work out

If you are a fitness freak must follow 300 workout at least once a week and those who are not can still follow ther's no no harm on the contrary it loosens up the body . I follow it  once a week along with my regular regime and believe me it works ! t not only breaks the monotony but is an effective work out for all parts of the body . It requires 5 minute warm up before the start and rest of it takes about 40 minutes without a break between each exercise . To follow the steps please click the link given below.




http://aakriti-narula.blogspot.in/2013/09/300-workout.html?spref=tw300+work+out
Be Gorgeous: 300 workout http://aakriti-narula.blogspot.com/2013/09/300-workout.html?spref=tw

Saturday, 16 November 2013

Be GORGEOUS

I take the pleasure to introduce Be Gorgeous http://aakriti-narula.blogspot.in/2013/08/about-moi.html a blog on makeup,fitness and fashion by Aakriti Narula , a model,  anchor and an actor  but above all my daughter  !

Well she is my daughter who is out to conquer the world . She  not only inspired me to blog but has been my critic too . It was an extremely emotional moment for me when she wrote her first blog almost a month ago , I know I should have shared it then but its never too late than never. Here I take the privilage to introduce and welcome her to the world of blogging !

Tuesday, 12 November 2013

Hijras Now a Separate Gender

They will be referred to as Hijras in both English and Bangla



The word hijra a Hindustani word, was derived from the Arabic root hjr in its sense of "leaving one's tribe, and has been borrowed into Hindi. The Indian usage has traditionally been translated into English as "eunuch" or "hermaphrodite," where "the irregularity of the male genitalia is central to the definition." However, in general hijras are born with typically male physiology, only a few having been born with male intersex variations. Some Hijras undergo an initiation rite into the hijra community called nirwaan, which refers to the removal of penis, testicles and scrotum.


Since the late 20th century, some hijra activists and Western non-government organizations (NGOs) have been lobbying for official recognition of the hijra as a kind of "third sex" or "third gender," as neither man nor woman. Hijras have successfully gained this recognition in Bangladesh.





Hijrasa a third gender community, who are neither male nor female from now on will be considered as a separate gender in Bangladesh and will get priority for education and other rights.

There are currently 10,000 Hijras living in the country referring to a survey conducted by the Ministry of Social Welfare.in Bangladesh , which led the government to consider them as a separate gender alongside the existing male and female sexes.A historic decision made by the cabinet meeting chaired by Prime Minister Sheikh Hasina 11.11.2013. The move came as the current government’s term draws to a close
Hijras are already enlisted as voters in Bangladesh. " Spelt with a j they will be referred as Hijras in both English and Bangla language. Any other translations in English is misleading," was mentioned by the cabinet secretary said.

Irrespective of any difference if every life form is looked as equal all these differences will just be washed out of the society has been conditioned. No doubt it takes time for conditioning of the minds but society is nothing but us.When we start to think in broader way without commenting about anything automatically , things change from the way tthey are being looked at .To conclude Bangldesh has done it India needs to do it too

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