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Sunday 24 November 2013
Keep Warm Look Hot
The year 2013 has been a year of short tops and high waist pants and denims , showing a little bit of skin around waist looked awesome until the winter set in Dressing up as I have always said is an art
and all that one needs is right dress sense and the confidence to carry what one is wearing . Few tips to follow this winter to keep warm and still look hot .http://aakriti-narula.blogspot.in/2013/11/keep-warm-look-hot.html
Please click the link on top to follow tips
Friday 22 November 2013
Tehelka dot om
This blog on Tehelka was no less than a shocker for me as much as Tarun Tejpals sexual assault news. I incidentally stumbled upon this poetry blog by some Rajkumar who has used objectionable language for girls//women in the magazine section of hindi edition. I felt disgusted not only after going through the concluding lines of the poem , where the poet has used बिकाऊ (for sale) word for a particular segment of girls but also the comments which are worse than the poem . I have copy pasted not only the link but also the entire page along with comments for people to read . It looks like mag section of Tehelka that is much in news these days yet not too sure but I wonder how can an editor allow such material to be published on a public platform . To condemn this article please go to the link published and post your comment.
http://www.tehelkahindi.com/stambh/anyastambh/buds/42.html
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तैंतीस वर्षीय राजू, भोपाल में मीडिया जगत से जुड़े हैं.'साहित्य की कोपलें ' उभरते हुए अंकुरों को खाद-पानी देने का एक छोटा सा प्रयास है. आप भी इस वर्ग के लिए अपनी रचनाएं (फोटो और संक्षिप्त परिचय के साथ) hindi@tehelka.com पर ईमेल कर सकते हैं या फिर नीचे लिखे पते पर भेज सकते हैं.
तहलका हिंदी, एम-76, एम ब्लॉक मार्केट, ग्रेटर कैलाश-2, नई दिल्ली-48
http://www.tehelkahindi.com/stambh/anyastambh/buds/42.html
खूबसूरत लड़कि नहीं मिलतीं आसानी से
होती हैं कई प्रतियोगिताएं
मिस सिटी से मिस यूनिवर्स तक
अब मिसेज भी होने लगी हैं
इसके बावजूद नहीं मिलतीं
उनके चेहरे पर लिपे होते हैं
प्रायोजकों के लेप
हर अंग पर लिपटी होती हैं
आयोजकों की चिंदियां
फिर भी नहीं होतीं वे खूबसूरत
उनके चेहरे पर चमकता है बाजार
अंतत: खारिज हो जाती हैं अगले साल
खूबसूरत लड़कियां नहीं मिलती प्रतियोगिताओं से
खूबसूरत लड़कियां जूझती हैं जीवन से
उनके चेहरे पर चमकती हैं पसीने की बूंदें
उनके दिल में होती है निश्छलता
नहीं जानतीं वे बाजार भाव
वे बिकाऊ नहीं होतीं
राजू कुमार
ख़ूबसूरत लड़कियां
खूबसूरत लड़कियां
नहीं मिलतीं आसानी से
होती हैं कई प्रतियोगिताएं
मिस सिटी से मिस यूनिवर्स तक
अब मिसेज भी होने लगी हैं
इसके बावजूद नहीं मिलतीं
उनके चेहरे पर लिपे होते हैं
प्रायोजकों के लेप
हर अंग पर लिपटी होती हैं
आयोजकों की चिंदियां
फिर भी नहीं होतीं वे खूबसूरत
उनके चेहरे पर चमकता है बाजार
अंतत: खारिज हो जाती हैं अगले साल
खूबसूरत लड़कियां नहीं मिलती प्रतियोगिताओं से
खूबसूरत लड़कियां जूझती हैं जीवन से
उनके चेहरे पर चमकती हैं पसीने की बूंदें
उनके दिल में होती है निश्छलता
नहीं जानतीं वे बाजार भाव
वे बिकाऊ नहीं होतीं
राजू कुमार
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तहलका हिंदी, एम-76, एम ब्लॉक मार्केट, ग्रेटर कैलाश-2, नई दिल्ली-48
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Comments (13 posted)
logo ke beech me iska sandesh kya sahi tarike pahuch payega !
एक धनी बाला ,
कम से कम वस्त्र पहन
दिखाती है जब ज्यादा से ज्यादा तन,
तो लोग कहते हैं
यही तो है आधुनिक फ़ैशन।
एक निर्धन बाला को
लोग कहते हैं बेशर्म,
जब वस्त्र न होने के कारण
वह ढाँप नहीं पाती अपना तन
kubsurat kavita likhi hai Raju jee aapne.
Badhai.
Abhijit Kr. Dubey
Asansol
आैरतें या लऱिकयां जो भी ईस तरह के प्रोग्राम में भाग लेते हैं अपने आप को बहूत ही आधूिनक समझते हैं, क्या पूरी जनता के सामने नंगा होना ही आैरतों का आधूनीकरण है?
अगर ऐसा है तो मैं तवायफ को ईन लोगों से कहीं अच्छा मानता हूं, तवायफ तो अपना िजश्म िसर्फ अपने गर्ाहक को ही िदखाती है, लेिकन ये लऱिकयां अपना िजश्म पूरी दूिनया को िदखाती हैं
13 March
जी हां, आपने चूड़ियां नहीं पहनी हैं और आप पहन भी नहीं सकते। आप ही के जैसे तमाम वे मर्द चूड़ियां पहनने का माद्दा नहीं रखते जो इसे दोयम दर्जे का काम समझते हैं। चूड़ियां पहनने के लिए कलेजा चाहिए साहब।
आप फौजी हैं। संगीन पर जाकर गोली खाते हैं। इस बात की इज़्ज़त करते हैं हम। लेकिन कभी सोचा है, आप तो सिर्फ एक बार गोली खाकर मर जाते हैं। आपके पीछे से आपकी वही बेवाएं आपकी नई पुश्त के लिए ज़िन्दगी से दो-दो हाथ करती हैं, जिनके हाथों में 'चूड़ियां' पड़ी हैं।
आप मर्द हैं और भारतीय समाज की व्यवस्था के मुताबिक आप आज़ाद हैं। कभी उस औरत की तरह दोहरी ज़िम्मेदारियां निभा कर देखिए जो आपको वह जिगरा देती है कि आप जाइए और मुल्क पर कुर्बान हो जाएं। पीछे से जो भी होगा उससे खुद ही निपटती हैं। आखिर स्त्री को दोयम दर्जे पर रखना आप लोग कब बंद करेंगे? इस तमाम शिक्षा प्रणाली और विकासवादी मानसिकता का क्या लाभ हो रहा है समाज को? चूड़ियां पहनना मतलब है अपने हाथ खुद बांध लेना। मर्यादा, लिहाज़ और शर्म के बंधनों में। कभी ऐसी बकवास बातें करने वालों को बंधन में बांध कर बैठाइए। तब यह जानेंगे कि चूड़ियां पहनने का मतलब क्या होता है।
Pravesh Chaurasiya
Story / Screenplay Writer ( Mumbai )
13 March
जी हां, आपने चूड़ियां नहीं पहनी हैं और आप पहन भी नहीं सकते। आप ही के जैसे तमाम वे मर्द चूड़ियां पहनने का माद्दा नहीं रखते जो इसे दोयम दर्जे का काम समझते हैं। चूड़ियां पहनने के लिए कलेजा चाहिए साहब।
आप फौजी हैं। संगीन पर जाकर गोली खाते हैं। इस बात की इज़्ज़त करते हैं हम। लेकिन कभी सोचा है, आप तो सिर्फ एक बार गोली खाकर मर जाते हैं। आपके पीछे से आपकी वही बेवाएं आपकी नई पुश्त के लिए ज़िन्दगी से दो-दो हाथ करती हैं, जिनके हाथों में 'चूड़ियां' पड़ी हैं।
आप मर्द हैं और भारतीय समाज की व्यवस्था के मुताबिक आप आज़ाद हैं। कभी उस औरत की तरह दोहरी ज़िम्मेदारियां निभा कर देखिए जो आपको वह जिगरा देती है कि आप जाइए और मुल्क पर कुर्बान हो जाएं। पीछे से जो भी होगा उससे खुद ही निपटती हैं। आखिर स्त्री को दोयम दर्जे पर रखना आप लोग कब बंद करेंगे? इस तमाम शिक्षा प्रणाली और विकासवादी मानसिकता का क्या लाभ हो रहा है समाज को? चूड़ियां पहनना मतलब है अपने हाथ खुद बांध लेना। मर्यादा, लिहाज़ और शर्म के बंधनों में। कभी ऐसी बकवास बातें करने वालों को बंधन में बांध कर बैठाइए। तब यह जानेंगे कि चूड़ियां पहनने का मतलब क्या होता है।
Pravesh Chaurasiya
Story/Screenplay Writer (Mumbai)
दिल्ली में चलती बस में सामुहिक बलात्कार मामले के बाद दोषियों को फांसी देने या नपुंसक बनाने पर चर्चा हो रही है। आज जब कांग्रेस और भाजपा समेत कई राजनीतिक दल बलात्कारी को रासायनिक तरीके से नपुंसक बनाने की पैरवी कर रहे हैं तो इस सुझाव के कानूनी पहलू, व्यावहारिकता और परिणाम जांचना लाजमी है। इस तरह का सुझाव पिछले तैंतीस साल में दो बार अदालती पैâसलों में आया। राजेंद्र प्रसाद बनाम उत्तर प्रदेश मामले के पैâसले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने १९८२ में ‘बच्चन िंसह बनाम पंजाब राज्य’ मामले की सुनवाई के दौरान फिर विचार किया। जब बलात्कारी को नपुंसक बनाने की वैकाqल्पक सजा के सुझाव का जिक्र हुआ तो पीठ ने उसे हंसी में टाल दिया। बच्चन िंसह की ओर से पेश हुए वकील डीके गर्ग कहते हैं, ‘कोर्ट ने सुझाव से असहमति जताई थी। कोर्ट की टिप्पणी थी कि ऐसी सजा वैâसे दी जा सकती है न्यायपालिका को अधिकार नहीं है कि वह स्वयं सजा तय करे और फिर वही सजा सुना दे। अदालत कानून के दायरे में रहकर ही सजा सुना सकती है।’ गर्ग की बात से दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आरएस सोढ़ी भी सहमति जताते हैं। सोढ़ी बच्चन िंसह मामले में पंजाब सरकार के वकील थे। उन्होंने कहा, कोर्ट ने सुझाव को गंभीरता से नहीं लिया था। अदालत का कहना था कि यह वैâस्ट्रेशन कहां से आ गया? वैâस्ट्रेशन वैâसे कर सकते हैं? अदालत ऐसा नहीं कह सकती। गौरतलब है। कि भारत में महिलाओं के प्रति बढ़ते यौन अपराधों को रोकने के लिए बलात्कारी को रासायनिक तरीके से नपुंसक बनाने की बात चल रही है। ऐसे में अगर इसके दृष्टांत खंगाले जाएं तो पता चलता है कि अमेरिका के वर्जीनिया में आनुवांशिक रूप से मंदबुद्धि लोगों के जबरन नपुंसक बनाने का कानून लागू था। यूएस सुप्रीम कोर्ट ने १९२७ में ‘बक बनाम बेल’ मामले में इसे संवैधानिक ठहराया था।
दिल्ली में चलती बस में सामुहिक बलात्कार मामले के बाद दोषियों को फांसी देने या नपुंसक बनाने पर चर्चा हो रही है। आज जब कांग्रेस और भाजपा समेत कई राजनीतिक दल बलात्कारी को रासायनिक तरीके से नपुंसक बनाने की पैरवी कर रहे हैं तो इस सुझाव के कानूनी पहलू, व्यावहारिकता और परिणाम जांचना लाजमी है। इस तरह का सुझाव पिछले तैंतीस साल में दो बार अदालती पैâसलों में आया। राजेंद्र प्रसाद बनाम उत्तर प्रदेश मामले के पैâसले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने १९८२ में ‘बच्चन िंसह बनाम पंजाब राज्य’ मामले की सुनवाई के दौरान फिर विचार किया। जब बलात्कारी को नपुंसक बनाने की वैकाqल्पक सजा के सुझाव का जिक्र हुआ तो पीठ ने उसे हंसी में टाल दिया। बच्चन िंसह की ओर से पेश हुए वकील डीके गर्ग कहते हैं, ‘कोर्ट ने सुझाव से असहमति जताई थी। कोर्ट की टिप्पणी थी कि ऐसी सजा वैâसे दी जा सकती है न्यायपालिका को अधिकार नहीं है कि वह स्वयं सजा तय करे और फिर वही सजा सुना दे। अदालत कानून के दायरे में रहकर ही सजा सुना सकती है।’ गर्ग की बात से दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आरएस सोढ़ी भी सहमति जताते हैं। सोढ़ी बच्चन िंसह मामले में पंजाब सरकार के वकील थे। उन्होंने कहा, कोर्ट ने सुझाव को गंभीरता से नहीं लिया था। अदालत का कहना था कि यह वैâस्ट्रेशन कहां से आ गया? वैâस्ट्रेशन वैâसे कर सकते हैं? अदालत ऐसा नहीं कह सकती। गौरतलब है। कि भारत में महिलाओं के प्रति बढ़ते यौन अपराधों को रोकने के लिए बलात्कारी को रासायनिक तरीके से नपुंसक बनाने की बात चल रही है। ऐसे में अगर इसके दृष्टांत खंगाले जाएं तो पता चलता है कि अमेरिका के वर्जीनिया में आनुवांशिक रूप से मंदबुद्धि लोगों के जबरन नपुंसक बनाने का कानून लागू था। यूएस सुप्रीम कोर्ट ने १९२७ में ‘बक बनाम बेल’ मामले में इसे संवैधानिक ठहराया था।
तहलका हिंदी
एम-76, दूसरा तल
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